पहाड़ का सीना चीर ने वाले दशरथ मांझी

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दशरथ माँझी

माउन्टेन मैन

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दशरथ मांझी (जन्म: 14 जनवरी 1929[1]– 17 अगस्त 2007 [2]) जिन्हें "माउंटेन मैन"के रूप में भी जाना जाता है,[3] बिहार में गया के करीब गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे।[4] केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली।[5][6][7] 22 वर्षों परिश्रम के बाद, दशरथ के बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 किमी से 15 किलोमीटर कर दिया।[8][9][10]

दशरथ माँझी (माउंटेन मैन)
दशरथ माँझीजन्मदशरथ
14 जनवरी 1929
गहलौरबिहारभारतमृत्यु17 अगस्त 2007
नयी दिल्ली, भारतमृत्यु का कारणपित्ताशय कैंसरराष्ट्रीयताभारतीयअन्य नाममाउंटेन मैनव्यवसायमज़दूरीप्रसिद्धि कारणवह अकेले पहाड़ को काटकर सड़क का निर्माण किया। पर्वत पुरूष दशरथ माँझी को 22 वर्षों तक नि:शुल्क छेनी-हथौड़ा पहाड़ तोड़ने के लिए हैमर मैन शिवू मिस्त्री ने प्रदान किये। उन्हीं के दिए छेनी-हथौड़े से दशरथ माँझी ने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया। दशरथ के कार्य में जान फूँकी थी, श्री मिस्त्री का अहम योगदान।जीवनसाथीफाल्गुनी देवी

पृष्ठभूमिसंपादित करें

...अपने बुलंद हौसलों और खुद को जो कुछ आता था, उसी के दम पर मैं मेहनत करता रहा. संघर्ष के दिनों में मेरी मां कहा करती थीं कि 12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं. उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो. बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बांध रखा था कि अपना काम करते रहो, चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो. हर रात के बाद दिन तो आता ही है.

दशरथ मांझी का वक्तव्य 
फिल्म: 'मांझी: द माउंटेन मैन में'[11]

दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे और दलित जाति के थे। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अत्री व वजी़रगंज की दूरी को कम करेगा।[5]

उपलब्धिसंपादित करें

दशरथ माँझी काफी कम उम्र ने अपने घर से भाग गए और धनबाद की कोयले की खानों में काम किया। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद ये अपने घर लौटे और 360-फुट-लम्बा (110 मी॰), 25-फुट-गहरा (7.6 मी॰) 30-फुट-चौड़ा (9.1 मी॰)गेहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाने का फैसला किया।[12]इन्होंने बताया, "जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इसने मेरे निश्चय को और मजबूत किया।"

इन्होंने अपने काम को 22 वर्षों(1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। माँझी का प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने गहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। हालांकि इन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है और इन्होंने इस पहाड़ के पत्थर भी बेचे फिर भी इनका ये प्रयास सराहनीय है।[2][13]बाद में माँझी ने कहा," पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दे कर और औज़ार खरीदने में मेरी मदद कर सहायता भी की।'"[14][15][16][17]

निधनसंपादित करें

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय(गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित माँझी का 73 साल की उम्र में, 17 अगस्त 2007 को निधन हो गया।[18]बिहार की राज्य सरकार के द्वारा इनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया।[19]

सम्मानसंपादित करें

मांझी 'माउंटेन मैन' के रूप में विख्यात हैं। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा। बिहारके तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के नाम पर रखा गहलौर से 3 किमी पक्की सड़क का और गहलौर गांव में उनके नाम पर एक अस्पताल के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।[20]

वर्तमान संस्कृति मेंसंपादित करें

फिल्म प्रभाग ने इन पर एक वृत्तचित्र (डाक्यूमेंट्री) फिल्म " द मैन हु मूव्ड द माउंटेन" का भी 2012 में उत्पादन किया कुमुद रंजन इस वृत्तचित्र(डॉक्यूमेंट्री) के निर्देशक हैं। जुलाई 2012 में निदेशक केतन मेहता ने दशरथ माँझी के जीवन पर आधारित फिल्म मांझी: द माउंटेन मैन बनाने की घोषणा की। अपनी मृत्युशय्या पर, मांझी अपने जीवन पर एक फिल्म बनाने के लिए "विशेष अधिकार" दे दिया।[21] 21 अगस्त 2015 को फिल्म को रिलीज़ किया गया।नवाज़ुद्दीन सिद्दीकीने माँझी की और राधिका आप्टे ने फाल्गुनी देवी की भूमिका निभाई है।[22]मांझी के कामों को एक कन्नड़ फिल्म "ओलवे मंदार" (en:Olave Mandara) में जयतीर्थ (Jayatheertha) द्वारा दिखाया गया है।

मार्च 2014 में प्रसारित टीवी शो सत्यमेव जयते का सीजन 2 जिसकी मेजबानी आमिर खान ने की, का पहला एपिसोड दशरथ माँझी को समर्पित किया गया।[21][23]आमिर खान और राजेश रंजन भी माँझी के बेटे भागीरथ मांझी और बहू बसंती देवी से मुलाकात की मांझी की और वित्तीय सहायता प्रदान करने का वादा किया।[24] हालांकि, 1 अप्रैल 2014 को चिकित्सीय देखभाल वहन करने में असमर्थ होने के कारण बसंती देवी की मृत्यु हो गयी। हाल ही में उसके पति ने ये कहा की अगर आमिर खान ने मदद का वादा पूरा किया होता तो ऐसा नहीं होता।[25]

सन्दर्भ

बा

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